Sunday, 7 March 2021

देश का सबसे बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल, होगा मुफ्त इलाज

    नई दिल्ली। 20 वर्ष तक बंद रहने के बाद बाला साहिब अस्पताल यहां शुरू हो गया। जिसमें पंथ रतन बाबा हरबंस सिंह जी कार सेवा वालों के नाम पर बनाए देश के सब से बड़े किडनी डायलिसिस अस्पताल का उदघाटन बाबा बचन सिंह जी ने गुरूद्वारा बाला साहिब परिसर में किया। यह अस्पताल 24 घंटे काम करेगा। विधिवत उद्घाटन से पहले गुरूद्वारा बंगला साहिब के हैड ग्रंथी ज्ञानी रणजीत सिंह जी ने अरदास की।

    इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देते हुए स. मनजिंदर सिंह सिरसा व स. हरमीत सिंह कालका ने बताया कि यह पूरी सिख कौम खास तौर पर दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी के लिए गर्व करने जैसा मौका है क्योंकि इसने देश के सब से बड़े अस्पताल को बनाने व शुरू करने के लिए पूरी योजनाबद्ध तरीके से काम किया। उन्होंने बताया कि इस अस्पताल में एक समय में 101 मरीजों का डायलिसिस हो सकेगा व प्रतिदिन 500 मरीजों का डायलिसिस हो सकेगा तथा जल्दी ही क्षमता बढ़ा कर अस्पताल को 1000बैड वाला किया जाएगा।

     उन्होंने कहा कि एक अन्य प्राप्ति यह है कि इस तकनीकी तौर पर एडवांस अस्पताल में सभी सेवाएं मुफ्त प्रदान की जाएंगी। अस्पताल में कोई बिलिंग या पेमेंट काउंटर नहीं होगा। इसके अलावा मरीज़ों व उनके साथ आए लोगों को गुरू का लंगर छकाया जाएगा।

    उन्होंने कहा कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी बड़े कारपोरेट घरानों से कारपोरेट सोशल रिसपांसीबिल्टी (सी.एस.आर), ऐसे प्रोजेक्ट के लिए योगदान देने वाले सज्जनों के योगदान व सरकारी स्कीमों का पूरा लाभ लेकर इस अस्पताल को चलाएगी। किसी भी मरीज़ के इलाज के लिए कोई पैसा नहीं लगेगा तथा देश के नामचीन डॉक्टर जो पहले ही डायलिसिस के क्षेत्र में हैं इस किडनी डायलिसिस अस्पताल का प्रबंध संभालेंगे।

    स. सिरसा व स. कालका ने कहा कि चाहे दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी जो सिख कौम की संस्था है इस प्रोजेक्ट की मालिक है पर यह अस्पताल समाज के हर वर्ग के लिए खुला है और कोई भी मरीज़ आ कर अपना डायलिसिस करवा सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी गुरू साहिबान द्वारा दर्शाए मार्ग ‘एक पिता एक्स के हम बारिक’ के सिद्धांत के अनुसार काम करती है।

     यहां उल्लेखनीय है कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इस प्राजेक्ट का दौरा किया और समीक्षा करने के बाद कहा था कि उन्हें गर्व महसूस हो रहा है कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी जो सिख कौम की संस्था है देश का सब से बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल शुरु करने जा रही है। जत्थेदार ने गुरू हरिकृष्ण पोलीक्लीनिक में सब से सस्ती एम.आर.आई, सी.टी.स्कैन, अल्ट्रा साउंड व अन्य मैडिकल सहुलियतें गुरूद्वारा बंगला साहिब परिसर में शुरु करने की पहलकदमी की प्रशंसा की थी। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अन्यों को इससे प्रेरणा लेकर गुरूद्वारा साहिबान परिसर में ऐसी मैडीकल सहुलियतें स्थापित करने के लिए कहा था। आज ज्ञानी रणजीत सिंह जत्थेदार तख्त श्री पटना साहिब ने दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी द्वारा किये जा रहे प्रयासों की प्रशंसा की।

     इस मौके पर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हम 20 साल से यह इमारत देख रहे थे और हैरान थे कि सिख तो जिस काम को शुरु कर लेते हैं कभी बीच में नहीं छोड़ते। कल शाम जब हमें पता लगा कि यहां सब से बड़ा डायलिसिस अस्पताल खुल रहा है वह भी जहां सभी का ईलाज मुफ्त होगा तो हमें बहुत खुशी हुई। उन्होंने कहा कि ऐसे काम केवल सिख कौम ही कर सकती है। उन्होंने कहा कि जब महिंद्र सिंह टिकैत आंदोलन करते थे तो कहते थे कि लंगर गुरूद्वारा साहिबान में मिलता है पर आंदोलन में भी लंगर बहुत जरूरी है।

    स. सिरसा व स. कालका ने कहा कि हमनें बाला साहिब अस्पताल शुरू करने का वादा किया था व पहले पड़ाव में हमनें किडनी डायलिसिस अस्पताल शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी का मकसद सुरक्षा व पहुंच वाली मैडीकल सहुलियत को अपने नए विचारों की बदौलत प्रदान करना है और यह दोनों प्रोजेक्ट इसकी प्रत्यक्ष मिसाल हैं। उन्होंने कहा कि महंगे मैडीकल ट्रीटमेंट के इस युग में सब की पहुंच में मैडिकल सहुलियत प्रदान करना समय की जरूरत है व दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम कर रही है।

    इस मौके पर तख्त श्री पटना साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रणजीत सिंह जी, दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी के अध्यक्ष स. मनजिंदर सिंह सिरसा, तख्त पटना साहिब प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह हित्त महासचिव स. हरमीत सिंह कालका, वरिष्ठ नेता कुलदीप सिंह भोगल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष रणजीत कौर व अन्य पदाधिकारियों के अलावा किसान नेता राकेश टिकैत, राजिंद्र सिंह चठ्ठा व अन्य गणमान्य शख्सीयतों के अलावा बड़ी गिनती में संगत मौजूद रही।

सोशल मीडिया के नियमन की दिशा में पहला कदम

    हिंसा और अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली आपत्तिजनक ऑनलाइन सामग्री को बाहर रखने के लिए नियमन की आवश्यकता के साथ ही हमारे मूलभूत संवैधानिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करने की आवश्यकता का संतुलन नए नियमों के मूल में है,जिसे न्यू मीडिया से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तैयार किया गया है।

 

   नीति ने एक तरफ ऑनलाइन समाचार प्लेटफॉर्म और प्रिंट मीडिया के बीच तथा दूसरी तरफ ऑनलाइन और टेलीविजन समाचार मीडिया के बीच समान शर्तें तैयार करने की कोशिश की है। इसके साथ ही ऑनलाइन समाचार पोर्टल को नैतिक आचार संहिता के दायरे में लाया गया है,जो प्रिंट मीडिया के लिए पहले से है जैसे प्रेस काउंसिल अधिनियम केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (विनियमन) नियम1994ने पत्रकारिता के आचरण के मानदंड रखे हैं। इनमें से कुछ प्लेटफॉर्मों की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी प्रदर्शित होने के कारण ऐसा करना काफी समय से लंबित था।

     इसी तरह सिनेमा उद्योग के पास निगरानी की जिम्मेदारियों के लिए एक फिल्म प्रमाणन एजेंसी तो है,पर ओटीटी प्लेटफॉर्मों के लिए कोई नहीं है। कलात्मक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने स्व-नियमन का प्रस्ताव दिया है और कहा है कि ओटीटी संस्थाओं को एक साथ होना चाहिए, एक कोड विकसित करना चाहिए और सामग्री का वर्गीकरण करना चाहिए जिससे गैर-वयस्कों को वयस्क सामग्री देखने से रोकने के लिए एक तंत्र विकसित किया जा सके। ऐसा करने के लिए उन्हें अवश्य कदम उठाना चाहिए। तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र की बात कही गई है, जिसमें पहली दो प्रकाशकों और स्व-विनियमन संस्थाएं हैं। तीसरी श्रेणी केंद्र सरकार की निगरानी समिति है। प्रस्तावित नीति में प्रकाशकों को शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करने और समयबद्ध जवाब और शिकायतों का समाधान सुनिश्चित करने की बात कही गई है। ऐसे में सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक स्व-विनियमन निकाय हो सकता है।

     ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में उन नियमों को लेकर एक तरह की चिंता हैं जो खातों के सत्यापन ऐक्सेस नियंत्रण आदि की बात करते हैं लेकिन इन मुद्दों को भारत के कानूनों के दायरे में हल करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए जबकि मुख्यधारा का मीडिया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में हिंसा को बढ़ावा देने समुदायों के बीच शत्रुता,मानहानि आदि से निपटने के प्रावधानों के प्रति सचेत है लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर सामग्री इस सबसे पूरी तरह से बेखबर लगती है।

    मीडिया या अन्य क्षेत्रों में महिला पेशेवरों के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई अश्लील टिप्पणियां और इस तरह के व्यवहार से निपटने में अक्षमता एक तरह से आश्चर्यचकित करती है कि क्या आईपीसी साइबर स्पेस में लागू नहीं होता है।

     भारतीय डिजिटल और ओटीटी प्लेयर्स ऑस्ट्रेलिया में डिजिटल कंपनियों द्वारा की गई ठोस कार्रवाई से सीख ले सकते हैं, जिन्होंने साथ मिलकर फेक न्यूज और दुष्प्रचार से निपटने के लिए एक नियमावली तैयार की है। इसे ऑस्ट्रेलियन कोड ऑफ प्रैक्टिस ऑन डिसइन्फॉर्मेशन एंड मिसइन्फॉर्मेशन कहा जाता है और इसे हाल ही में डिजिटिल उद्योग समूह द्वारा जारी किया गया था।

     ऑस्ट्रेलियाई संचार और मीडिया प्राधिकरण (एसीएमए) ने इस पहल का स्वागत किया है और कहा है कि दो-तिहाई से ज्यादा ऑस्ट्रेलियाई इस बात को लेकर चिंतित थे कि 'इंटरनेट पर क्या सही है और क्या फर्जी'। जवाब में एसीएमए का कहना है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म स्व-नियामक कोड के लिए राजी हैं, जो दुष्प्रचार और झूठी खबर के फैलने से पैदा होने वाले गंभीर नुकसान के खिलाफ सुरक्षा उपाय करता है। डिजिटल प्लेटफॉर्मों द्वारा कार्रवाई करने के वादे में अकाउंट्स को बंद करना और सामग्री को हटाना शामिल है।

      यूके में सरकार ऑनलाइन कंपनियों को हानिकारक सामग्री के लिए जिम्मेदार बनाने के लिए और ऐसी सामग्री के हटाने में विफल रहने वाली कंपनियों को दंडित करने के लिए एक कानून लाने जा रही है। इस प्रस्तावित 'ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक' का उद्देश्य इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा करना और उन प्लेटफॉर्मों के साथ दृढ़ता से निपटना है जो हिंसा, आतंकवादी सामग्री, बाल उत्पीड़न, साइबर बुलिंग आदि को बढ़ावा देते हैं। डिजिटल सेक्रेटरी ओलिवर डाउडेन ने कहा है, 'निश्चित रूप से मैं प्रो-टेक हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी के लिए टेक फ्री हो।' एक तरह से देखें तो यह इस मुद्दे पर लोकतांत्रिक देशों में वर्तमान मनोदशा को दिखाता है।

     यूके में स्व-नियमन प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है और निजी टेलीविजन व रेडियो को स्वतंत्र टेलीविजन आयोग और रेडियो प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है जैसा कि एक कानून द्वारा प्रदान किया गया है। सरकार के दिशानिर्देशों की घोषणा करने वाले दो मंत्रियों, रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर हैं और यह नहीं भूलना चाहिए कि ये दोनों 'दूसरी आजादी के संघर्ष' के नायक हैं जब वे 1970 के दशक के मध्य में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ लड़े और लगभग डेढ़ साल तक कैद में रहे जिससे लोगों को अपना संविधान और लोकतंत्र वापस मिल सके।

      स्पष्ट है कि बुनियादी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है और मीडिया नियमन के संबंध में नीतियों में भी दिखती रहेगी। आखिर में, वह फ्रेमवर्क जिसके दायरे में रहकर कंपनियों को भारत में काम करना चाहिए। जैसा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्हें देश के नियमों के तहत काम करना चाहिए और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

     हाल के समय में ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करने की कोशिश की है और यहां तक दावा किया है कि वह भारतीयों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है। 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों पर हमारे अध्याय में अंतर्निहित है और इसके साथ उचित प्रतिबंध भी है। ये मौजूद है क्योंकि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जटिलताओं के साथ दुनिया में सबसे विविध समाज है। यही वजह है कि भारत के संस्थापकों ने बहुत ही सहज भाव और दूरदर्शिता के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर आगाह भी किया ताकि संवैधानिक अधिकार आंतरिक शांति और सद्भाव को बढ़ावा दे। ये स्वतंत्रताएं और प्रतिबंध क्या हैं, इसे हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने अनगिनत मामलों में परिभाषित किया है और भारत की शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून इस भूमि का कानून हैं। हम नहीं चाहते कि कुछ प्राइवेट अंतरराष्ट्रीय कंपनियां कोर्ट से ऊपर की भूमिका में आएं और हमारे संविधान के ऊपर होकर बात करें।

         ए. सूर्य प्रकाश

गूगल असिस्टेंट ने बदली दुनिया...

    एक नज़र पिछले दशक पर - नैनो कंप्यूटर, गूगल अस्टिटेंट जैसे आधुनिक गैजेट से मिली सुविधाएं...  वर्ष 2010 के आरंभ के साथ ही तकनीक ने उन सपनों को हकीकत में बदल दिया, जिसका सपना हमने कभी देखा था। आइए एक नजर डालते हैं पिछले दशक के ऐसे ही महत्वपूर्ण अविष्कारों पर।

   

    तारीख - 25/10/2011
गैजेट, जो हमें हमसे बेहतर जानता है...

    आईपॉड के अविष्कारक मैट रोजर्स के बनाए थर्मोस्टेट गैजेट से घर का तापमान सेट किया जा सकता है। यह हमारी आदतों से सीख कर कार्बन उत्सर्जन कम करने में हमारी सहायता करता है।

   तारीख - 18/05/2016
गूगल असिस्टेंट ने बदली दुनिया...

    गूगल असिस्टेंट के रूप में एआई (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस) की क्षमता का पता चला। 27 भाषाओं में स्मार्ट स्पीकर मैसेज टाइप करने, इंटरनेट पर सवालों के जवाब ढूंढने और बोले गए शब्दों का अनुवाद करने में उपयोगी सिद्ध हुआ।

    तारीख - 15/02/2017
जब इसरो ने रचा इतिहास...

    भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो ने पहली बार 104 सैटेलाइट एक साथ प्रक्षेपित कर इतिहास रच दिया। श्रीहरिकोटा के सतीश धवन लॉन्चिंग सेंटर से पीएसएलवी-सी 37 से इन उपग्रहों को लांच किया गया था।

     तारीख - 31/03/2019
दुनिया का पहला नैनो कंप्यूटर...

   वर्ष 2019 में अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कार्बन के नैनोट्यूब से दुनिया का पहला नैनो कंप्यूटर प्रस्तुत किया। इसका नाम सैंड्रिक रखा गया है। इसमें वन-बिट प्रोसेसर लगा हुआ है।

Sunday, 17 March 2019

अब इंसान के शरीर में धड़केगा सुअर का दिल !

   मेडिकल साइंस अंग प्रत्यर्पण के लिए पूरी तरह से अंगदाताओं पर निर्भर करता है। शोध एवं खबर तो यही कहती है कि एक जर्मन सर्जन ने सूअर के दिल को लंगूर में सफलतापूर्वक प्रत्यर्पित कर जल्द ही सुअरों का दिल इंसानों में धड़काने की संभावना भी जगा दी है।

   शोध एवं खबर है कि जर्मन सर्जन ब्रूनो राइषार्ट ने लंगूर के शरीर में सूअर के दिल का सफलतापूर्वक प्रत्यर्पण किया है। अब यह उम्मीद जतायी जा रही है कि ऐसा प्रयोग इंसान के साथ भी आजमाया जाएगा, इंसान के शरीर में सूअर का दिल धड़कने की कितनी संभावना है। 
  खबर है कि पहली बार लंगूर के शरीर में सूअर के दिल का प्रत्यर्पण उम्मीद जगाता है कि यह इंसान के साथ भी संभव हो सकेगा. सवाल है कि जानवरों में सूअर को ही डोनर के रूप में क्यों चुना गया?
   खबर है कि यहां नैतिकता अहम है. हम सुअरों को लंबे समय से खा रहे हैं। इन्हें मारने को लेकर समाज में स्वीकार्यता भी है। एक सूअर हर चार महीने में बच्चे पैदा करने की स्थिति में होता है। इतना ही नहीं जन्म के छह महीने बाद ही सूअर प्रजनन के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं, वहीं सूअर का दिल इंसान के दिल से काफी मिलता-जुलता है।
   खबर है कि वैसे भी पिछले 40 सालों से इंसानों के शरीर में सूअर के हृदय के वॉल्व का इस्तेमाल तो हो ही रहा है। इस प्रक्रिया अंग लेने वाले के रूप में लंगूर को ही क्यों चुना गया? ये प्रशासन की मांग थी. उनका कहना था कि प्रत्यर्पण सूअर या कुत्ते के शरीर में नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय किसी ऐसे को चुना जाना चाहिए जो जैविक रूप से इंसानों के करीब हो ताकि यह समझा जा सके कि इस तरह की प्रक्रिया इंसानों के साथ कितनी सफल होगी। 
  खबर है कि क्या इस प्रक्रिया में किसी भी साधारण सूअर को बतौर डोनर चुना जा सकता है? सूअर का दिल इंसान स्वीकार करें, इसके लिए पहले डोनर के अंग को इसके अनुकूल बनाना होगा. यही कारण है कि प्रत्यर्पण से पहले सूअर के दिल में अनुवांशिक रूप से बदलाव किया जाता है। इस तरह के प्रत्यर्पण से क्या फायदा होगा? 
   खबर है कि सबसे बड़ी बात तो यह है कि इससे अंगदाताओं की भारी कमी की समस्या में लाभ मिलेगा। क्या इसे सफलता का क्षण कहा जा सकता है? खबर है कि कुछ और भी सफलताएं मिलनी चाहिए. मुझे डर भी है। दरअसल अब हमें पैसा चाहिए, क्योंकि इस तरह के प्रयोग महंगे हैं। खबर है कि  हमें निवेशक चाहिए, और यूरोप में निवेशक खोज पाना बहुत मुश्किल है।
   जर्मन रिसर्च फाउंडेशन ने अब तक काफी वित्तीय सहायता दी है, लेकिन आगे की पायलट स्टडी के लिए हमें अतिरिक्त धन, साधन के साथ-साथ अस्पताल भी चाहिए। आपको कैसे इतना भरोसा है कि यह काम करेगा? आपको हमेशा खुद को अज्ञात चीजों की ओर ले जाना होता है. ऐसी आशंकाएं कम हैं कि यह काम नहीं करेगा।

Monday, 11 September 2017

प्रभावशाली स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के लिए सूचना प्रौद्योगिकी की आवश्‍यकता

      नई दिल्‍ली। स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण राज्‍य मंत्री अश्‍विनी कुमार चौबे ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान नई दिल्‍ली में ई-हेल्‍थ केयर के क्षेत्र में कम लागत वाली तकनीक के प्रयोग पर सातवें अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का उदघाटन किया।

      इस समारोह में अश्विनी कुमार चौबे ने कहा कि देश में बेहतर और प्रभावशाली स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं प्रदान करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी के उपयोग की आवश्‍यकता है। प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी की डिजिटल इंडिया पहल का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं प्रदान करते समय तकनीक का पर्याप्‍त प्रयोग होना चाहिए।
      चौबे ने कहा कि स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं में ई-एप्‍लीकेशन के प्रयोग से खर्चों में कमी आएगी और चिकित्‍सकों तथा मरीजों का समय बचेगा। प्राचीन भारत की स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली और सुश्रुत, चरक तथा धनवंतरी के योगदान का जिक्र करते हुए चौबे ने कहा कि हमें विज्ञान और तकनीकी क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए, ताकि स्‍वास्‍थ्‍य सेवाएं सस्‍ती, सुलभ और अधिक पारदर्शी हों।
      इस अवसर पर चौबे ने उन चिकित्‍सकों को भी सम्‍मानित किया, जिन्‍होंने दूर दराज के क्षेत्रों में जाए बिना ई-एप्लिकेशन के माध्‍यम से मरीजों का सफलतापूर्वक उपचार किया। उन्‍होंने कहा कि नई तकनीक के प्रयोग से न सिर्फ कार्य कुशलता बढ़ेगी, बल्कि स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के क्षेत्र में पारदर्शिता भी आएगी। 
     स्‍वास्‍थ्‍य राज्‍य मंत्री ने अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया, कम्‍प्‍यूटर फैसलिटी विभाग और इस सम्‍मेलन के प्रभारी प्रो. दीपक अग्रवाल की इस सम्‍मेलन के आयोजन के लिए प्रशंसा की। चौबे ने उम्‍मीद जताई कि प्रधानमंत्री के डिजिटल इंडिया विजन को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान के ई-इनिशिएटिव आगे बढ़ायेंगे।
    इस अवसर पर महात्‍मा गांधी चिकित्‍सा विज्ञान विश्‍वविद्यालय, जयपुर के अध्‍यक्ष और उप कुलपति प्रो. एम.सी मिश्रा, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान, नई दिल्‍ली के पूर्व निदेशक तथा स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय और एम्‍स के वरिष्ठ अधिकारी मौजूद थे।

Friday, 1 September 2017

राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह : बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए स्‍तनपान महत्‍वपूर्ण

      स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण 1 सितम्‍बर से 7 सितम्‍बर, 2017 तक राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह मना रहा है। इस वर्ष राष्‍ट्रीय पोषण सप्‍ताह का विषय है नवजात शिशु एवं बाल आहार प्रथाएं (आईबाईसीएफ) बेहतर बाल स्‍वास्‍थ्‍य। 

      इस अवधि के दौरान बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा और उनकी बेहतरी में उचित पोषण के महत्‍व के बारे में जन जागरूकता पैदा करने के लिए एक सप्‍ताह का अभियान चलाया जा रहा है। नवजात शिशु एवं बाल आहार प्रथाओं को अधिकतम बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने मां- मां की असीम ममता कार्यक्रम शुरू किया है ताकि देश में स्‍तनपान का दायरा बढ़ाया जा सके। 
   मां कार्यक्रम के अंतर्गत स्‍तनपान को बढ़ावा देने के लिए जिला और ब्‍लॉक स्‍तर पर कार्यक्रम प्रबंधकों सहित डॉक्‍टरों, नर्सों और एएनएम के साथ करीब 3.7 लाख आशा और करीब 82,000 स्‍वास्‍थ्‍य कार्यकर्ताओं को संवेदनशील बनाया गया है और 23,000 से ज्‍यादा स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा कर्मचारियों को आईबाईसीएफ प्रशिक्षण दिया गया है। 
     साथ ही उपयुक्‍त स्‍तनपान परंपराओं के महत्‍व के संबंध में माताओं को संवेदनशील बनाने के लिए ग्रामीण स्‍तरों पर आशा द्वारा 1.49 लाख से अधिक माताओं की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं। इस सप्‍ताह के दौरान कार्यक्रम प्रबंधकों के साथ माताओं की बैठकें और ब्‍लॉक जिला स्‍तर की कार्यशालाओं के आयोजन की भी योजना बनाई गई है। 
    समुदाय में आईबाईसीएफ प्रथाओं में परिवर्तन लाने और जागरूकता बढ़ाने के लिए आंगनबाड़ी केन्‍द्रों में ग्रामीण स्‍तर पर ग्राम स्‍वास्‍थ्‍य और पोषण दिवस आयोजित किया जाएगा। इसके अलावा सार्वजनिक सुविधाओं में स्‍तनपान प्रबंधन केन्‍द्रों पर राष्‍ट्रीय दिशा निर्देश हाल ही में जारी किए गए हैं ताकि स्‍तनपान प्रबंधन केन्‍द्रों की स्‍थापना को आसान बनाया जा सके और बीमार और समय से पूर्व जन्‍मे बच्‍चों को सुरक्षित मानव स्‍तन दुग्‍ध मिल सके।
      बच्‍चों के स्‍वास्‍थ्‍य के लिए स्‍तनपान महत्‍वपूर्ण है। जन्‍म के एक घंटे के भीतर स्‍तनपान नवजात शिशुओं की मृत्‍यु के 20 प्रतिशत मामलों को कम कर देता है। नवजात शिशुओं को जिन्‍हें मां का दूध नहीं मिल पाता उनकी स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों की तुलना में निमोनिया से 15 गुना और पेचिश से 11 गुना अधिक मृत्‍यु की संभावना रहती है। साथ ही स्‍तनपान नहीं करने वाले बच्‍चों में मधुमेह, मोटापा, एलर्जी, दमा, ल्‍यूकेमिया आदि होने का भी खतरा रहता है। स्‍तनपान करने वाले बच्‍चों का आईक्‍यू भी बेहतर होता है।  

Wednesday, 23 August 2017

देश में 600 मिलियन से अधिक लोग किफायती स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल से वंचित

    केन्‍द्रीय पूर्वोत्‍तर क्षेत्र विकास राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, जन शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्‍य मंत्री डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने मेक इन इंडिया स्‍वास्‍थ्‍य मॉड्यूल तैयार करने का आग्रह किया है। 

  भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा यहां आयोजित सीआईआई स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा कि 21वीं सदी के भारत की बदलती हुई स्‍वास्‍थ्‍य जरूरतों को पूरा करने के लिए यह मॉड्यूल सार्वजनिक निजी भागीदारी और बहुकेन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सहयोग पर आधारित हो सकता है। डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कहा कि संपूर्ण भारतीय समाज बड़ी तेजी से उभर रहा है। 
       हाल ही के समय में भारत भी वैश्विक दुनिया का हिस्‍सा बन गया है। जिससे स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल व्‍यवस्‍था सहित जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है। एक ओर मधुमेह और हृदय से जुड़ी बीमारियां ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ रही हैं, जो पहले शहरी आबादी तक सीमित थीं। 
     वहीं दूसरी ओर इलाज के आधुनिक तरीके केवल शहरों और बड़े कस्‍बों तक ही सीमित हैं। जिसके परिणामस्‍वरूप 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी केवल देश की एक तिहाई अस्‍पताल सुविधाओं का ही लाभ उठा पाती है। 600 मिलियन से अधिक लोग देश में किफायती स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल से वंचित हैं।
     निजी क्षेत्र के उद्भव को महत्‍वपूर्ण बताते हुए डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने बल दिया कि भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सुविधाएं अभी भी अत्‍यधिक प्रासांगिक है। इसलिए उन्‍होंने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल एजेंसियों के बीच स्‍वस्‍थ समन्‍वय का आग्रह किया। 
      डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने पूर्वोत्‍तर के अनुभव का हवाला दिया जहां उन्‍होंने देश के प्रमुख कॉरपोरेट क्षेत्र के अस्‍पताल समूहों को स्‍थान की व्‍यावहारिकता के आधार पर ओपीडी क्लिनिक या जांच केन्‍द्र अथवा संपूर्ण अस्‍पताल सहित विभिन्‍न स्‍तर के स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल केन्‍द्र स्‍थापित करने के लिए प्रोत्‍साहित किया था। 
     विविधता की सीमा का हवाला देते हुए डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने देश के विभिन्‍न क्षेत्रों की भौगोलिक विविधताओं के बारे में बताया। इस संदर्भ में उन्‍होंने पूर्वोत्‍तर के दूर-दराज के विस्‍तृत क्षेत्रों का हवाला दिया। कहा कि इस क्षेत्र में उन्‍होंने एयर क्लिनिक के रूप में हैलिकॉप्‍टर देखभाल सेवा शुरू करने का प्रस्‍ताव दिया था, जिसके जरिए विशेषज्ञ डॉक्‍टर दूर-दराज के क्षेत्रों में ओपीडी के लिए जा सकते हैं।
      वापसी के समय जरूरतमंद मरीजों को अस्‍पताल में दाखिल करने के लिये अपने साथ ला सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि यही सुविधा जम्‍मू-कश्‍मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्‍तराखंड़ जैसे पहाड़ी राज्‍यों में भी शुरू की जा सकती हैं।

देश का सबसे बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल, होगा मुफ्त इलाज     नई दिल्ली। 20 वर्ष तक बंद रहने के बाद बाला साहिब अस्पताल यहां शुरू हो गया। जिसम...