Tuesday, 25 July 2017

मातृत्‍व मृत्‍यु निगरानी एवं मोचन के लिए राष्‍ट्रीय कार्यशाला

          स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने मातृत्‍व मृत्‍यु निगरानी एवं मोचन (एमडीएसआर) को मजबूत बनाने और मातृत्‍व में व्‍यावधान पड़ने के कारणों की समीक्षा (एमएनएम) के लिए दो दिवसीय राष्‍ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया। 

   नए एमडीएसआर दिशा-निर्देश पुराने दिशा-निर्देशों पर आधारित हैं। इनमें गोपनीय समीक्षा, प्रवासी मातृत्‍व मृत्‍यु समीक्षा, मातृत्‍व मृत्‍यु के कारणों से संबंधित आईसीडी-10 वर्गीकरण का इस्‍तेमाल, बैठकों का सटीक बयौरा, प्रत्‍युत्तर और समीक्षा का समावेश तथा ‘न नाम- न आरोप’ नीति को शुरू करने जैसे मुख्‍य बिंदु शामिल हैं।
        इसके अलावा मातृत्‍व मृत्‍यु के ‘अन्‍य’ कारणों को समझने और उनके अनुरूप कार्य योजना बनाने के कदमों को भी सम्मिलित किया गया है। एमडीएसआर और एमएनएम से मातृत्‍व मृत्‍यु की जानकारी प्राप्‍त करने में मदद मिलती है और उसके आधार पर भविष्‍य में ऐसी मृत्‍यु को रोकने के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने में सुविधा होती है। 
         विशेषज्ञ प्रशिक्षकों को तैयार करने के लिए चार चिकित्‍सा संस्‍थानों को क्षेत्रीय प्रशिक्षण केन्‍द्रों के रूप में चिन्हित किया गया है। इनमें ओबीजीवाईएन चेन्‍नै, केजीएमयू लखनऊ और गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज, असम शामिल हैं। अतिरिक्‍त प्रशिक्षण केन्‍द्रों को चिन्हित करने की प्रक्रिया इस समय जारी है। प्रशिक्षण प्रारूप का विकास, विभिन्‍न गतिविधियों के कार्यान्‍वयन डब्‍ल्‍यूएचओ, यूनिसेफ इत्‍यादि जैसे विकास प्रतिभागियों की सहायता, नागरिक पंजीकरण एवं महत्‍वपूर्ण सांख्यिकी (सीआरवीएस) और एमडीएसआर को जोड़ने की संभावनाओं की खोज, एमडीएसआर के लिए राष्‍ट्रीय स्‍तरीय सॉफ्टवेयर विकास की संभावनाओं की खोज, कार्यशाला में अंतर्राष्‍ट्रीय, राष्‍ट्रीय और क्षेत्रीय भागीदारों ने हिस्‍सा लिया। 
       देश में एमडीएसआर तथा एमएनएम को क्रियान्वित करने और मजबूत बनाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। कार्यशाला में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय, एनएचएसआरसी, 33 राज्‍यों और 45 मेडिकल कॉलेजों के प्रतिनिधियों सहित विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन, यूनिसेफ और सिविल सोसायटी संगठनों के लोग भी सम्मिलित हुए।

Friday, 21 July 2017

भारत में निमोनिया से सालाना करीब 1.8 लाख बच्चों की मौत

          करीब 1.8 लाख मौतों और सालाना 20 लाख से अधिक मामलों के साथ बच्चों में होने वाला निमोनिया भारत पर एक बड़ा वित्तीय बोझ बन गया है। 

       निमोनिया के इलाज में आने वाली लागत गरीबी के चक्र को बनाए रखती है। निमोनिया से ग्रस्त बच्चों के माता-पिता का काफी सारा पैसा अस्पतालों के भारी-भरकम बिल चुकाने में खर्च हो जाता है। अपने बच्चे का इलाज कराने में उनकी कई महीनों की मजदूरी खर्च हो जाती है। यही नहीं, जो वक्त उन्हें अपने कार्य में देना चाहिए, उसे वह अपने बीमार बच्चे की देखभाल करने में लगाते हैं। 
         इससे भारत की अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है। स्वस्थ बच्चों का अपेक्षाकृत बेहतर ज्ञानात्मक विकास होता है, वह स्कूल में भी अच्छा करते हैं और आगे जाकर जब वह पेशेवर जिंदगी में कार्यबल में शामिल होते हैं, तब वह अधिक उपयोगी साबित होते हैं तथा वह अधिक कमाते हैं। 
         स्पष्ट है कि स्वस्थ रहने से ही धन आता है। ऐसे कई वैश्विक उदाहरण हैं जहां स्वस्थ जनसंख्या ने अपनी आय बढ़ाई और तेजी के साथ गरीब के कुचक्र से बाहर निकला गया। ऐसे में पीसीवी आर्थिक रूप से विकसित भारत के निर्माण की दिशा में भारत की तरक्की के लिए एक महत्वपूर्ण निवेश है। 
         निमोनिया से होने वाली मौतों के मामले में भारत विश्व में सबसे आगे है, पीसीवी की शुरुआत के साथ इन आंकड़ों को बदलने का हमारे पास पूरा अवसर है। 2014 में मौजूदा सरकार ने भारत की जनता से यह वायदा किया था कि वह उनके स्‍वास्‍थ्‍य की रक्षा करेगी और इस देश के स्त्रियों, पुरूषों और बच्‍चों को अपने जीवन को बचाने और स्‍वस्‍थ जीवन जीने का हर अवसर प्रदान करेगी। उठाये गये प्रमुख कदमों के तहत यथासंभव कई रोगों से अपने बच्‍चों को सुरक्षित करना है। 
          इस संबंध में सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिये नये टीके शुरू करना और उन्‍हें हर व्‍यक्ति तक पहुंचाना शामिल है। नरेन्‍द्र मोदी जी के दूरदर्शी नेतृत्‍व के तहत जन स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्र में यह अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण नीतिगत फैसला था। बाल और शिशु मृत्‍यु को कम करने के लिए नये टीके शुरू किये गये हैं। पिछले दो वर्षों के दौरान सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के जरिये इनएक्टिवेटेड पोलियो टीका (आईपीवी), पेचिशरोधी रोटावायरस टीका और खसरा व रूबेलारोधी मीजल-रूबेला टीका शुरू किया गया है। 
         निमोनिया के खिलाफ टीका एक नये हथियार के रूप में सामने आया है। इसे न्‍यूमोकोकल कोन्‍जूगेटेड वैक्सिन (पीसीवी) के नाम से जाना जाता है। 130 से अधिक देशों ने बाल टीकाकरण कार्यक्रम के अंग के रूप में पीसीवी को शुरू किया है, जो विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के वैश्विक सुझावों के अनुरूप है। इस टीके से निमोनिया के अत्‍यंत सामान्‍य कारणों के खिलाफ सुरक्षा होती है। यह एक तरह का बैक्‍टीरिया होता है, जिसे न्‍यूमोकोकस कहा जाता है। 
          इस बैक्‍टीरिया से कान में संक्रमण, दिमागी बुखार और रक्‍त संक्रमण जैसे रोग भी हो जाते हैं। इन रोगों से मृत्‍यु हो सकती है या गंभीर विकलांगता की स्थिति भी पैदा हो सकती है। यह टीका काफी समय से भारत में निजी क्षेत्र में उपलब्‍ध था। केवल अमीर परिवारों के बच्‍चों को ही यह टीका मिल पाता था, लेकिन आज इसे सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम के तहत लाने की वजह से हम प्रयास कर रहे हैं कि यह टीका सभी बच्‍चों तक पहुंचे, खासतौर से उन बच्‍चों तक, जो वंचित वर्ग के हैं। 
          जीवन बचाने वाले टीकों की उपलब्‍धता केवल उसी वर्ग तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए, जो उसे प्राप्‍त कर सकते हैं। पीसीवी जैसे टीकों के जरिये हम इस देश के नागरिकों को बेहतर भविष्‍य दे सकते हैं और हर नागरिक के जीवन को स्‍वस्‍थ और सकारात्‍मक बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। अब मातृ और शिशु भी टिटनेस मुक्त होते हैं।
         भारत के यूआईपी में सरकार के निवेश और प्रतिबद्धता ने इस दिशा में प्रगति में अहम योगदान दिया है। आज यूआईपी के जरिए भारतीय बच्चों को 11 जानलेवा और खतरनाक बीमारियों का टीका उपलब्ध करवाया जा रहा है। पीसीवी के पेश किए जाने से यह आंकड़ा बढ़कर 12 हो गया है। 
         हाल ही में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-4) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत का पूर्ण टीकाकरण कवरेज 62 प्रतिशत है, जो कि करीब एक दशक पहले 43.5 प्रतिशत था। और अधिक टीकों के आने और अधिक कवरेज से शिशु एवं बाल मृत्यु दर में कमी आएगी। इस गति में तेजी लाने के लिए वर्ष 2014 में मिशन इंद्रधनुष भी शुरू किया गया था।
         इसका मकसद यह सुनिश्चित करना था कि वर्ष 2020 तक जीवन रक्षक टीकों तक भारत के 90 प्रतिशत बच्चों की पहुंच हो जाए। हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने इस लक्ष्य की समयसीमा घटाकर 2018 कर दी है। इससे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए परियोजना की गति शीर्ष पर है। इस बात पर पूरा जोर है कि देश में कोई भी बच्चा इनके लाभ से वंचित न रहे।

Monday, 17 July 2017

सोहम : एक अभिनव नवजात श्रवण स्‍क्रीनिंग उपकरण

       देश में विकसित नवजात श्रवण स्क्रीनिंग उपकरण सोहम का नई दिल्‍ली में विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री वाईएस चौधरी ने औपचारिक रूप से शुभारंभ किया। 

       नवजात श्रवण स्क्रीनिंग उपकरण को स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायो डिजाइन (एसआईबी) के स्टार्टअप मैसर्स सोहम इनोवेशन लैब्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने विकसित किया है। यह अभिनव चिकित्सा उपकरण, बायोटैक्नोलॉजी विभाग (डीबीटी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन विकसित किया गया है। 
          एसआईबी डीबीटी का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसका लक्ष्य भारत की नैदानिक ​​आवश्यकताओं के अनुसार अभिनव और सस्‍ते चिकित्‍सा उपकरणों को विकसित करना तथा भारत में चिकित्सा प्रौद्योगिकी आविष्कारकर्ताओं की अगली पीढ़ी को प्रशिक्षित करना है। यह सरकार के मेक इन इंडिया अभियान में एक महत्वपूर्ण योगदान है।
        एम्‍स और आईआईटी दिल्ली ने अंतर्राष्ट्रीय भागीदारों के सहयोग से संयुक्त रूप से इस कार्यक्रम को लागू किया गया है। बायोटेक कंसोर्टियम इंडिया लिमिटेड इस कार्यक्रम की तकनीकी और कानूनी गतिविधियों का प्रबंधन करता है। सोहम एक कम लागत वाला विशेष उपकरण है, जो मस्तिष्क की श्रवण की आवाज का उपयोग करता है और नवजात शिशु में सुनने की प्रक्रिया की जांच करने के लिए श्रवण परीक्षण में स्वर्ण मानक है।
          अभी तक, यह तकनीक बेहद महंगी है और अनेक लोगों के लिए इस तक पहुंच नहीं है। स्‍टार्टअप सोहम ने संसाधनों के लिए उपयुक्त यह तकनीक बनायी है और इसका उद्देश्‍य देश में प्रति वर्ष पैदा होने वाले लगभग 26 मिलियन बच्चों की जरूरत पूरा करना है। श्रवण बाधिता जन्म विकारों में से सबसे एक सबसे प्रमुख विकार है। जन्म से ही सुनाई न देना, आनुवांशिक और गैर-आनुवांशिक दोनों कारकों का ही परिणाम है। ये कारक भारत में ज्यादातर संसाधन रूप से गरीब अर्थव्यवस्थाओं से जुड़े हैं। 
            उन्नत स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के विपरीत, श्रवण बाधित का पता ही नहीं चल पाता। इस प्रकार, इसका पता बच्‍चे की उम्र चार वर्ष से अधिक होने पर पता चलता है, जब त‍ब इस हानि को दूर करने में बहुत देर हो चुकी होती है। इससे कई बार बच्‍चे बोल पाने में भी असमर्थ होते हैं और मानसिक रूप से भी बीमार हो सकते हैं। 
          इन सबका बच्‍चे पर गहरा कुप्रभाव पड़ता है तथा जन्‍म पर्यन्‍त खामियाजा भुगतना पड़ता है। विश्व स्तर पर हर साल लगभग 800000 श्रवण रूप से दिव्‍यांग बच्चें पैदा होते है, जिनमें से करीब 100000 भारत में पैदा होते हैं, इसलिए इस रोके जाने वाली क्षति की जल्दी स्क्रीनिंग किये जाने की आवश्‍यकता है, इससे समय पर उपचार और पुनर्वास की सुविधा प्रदान करने में मदद मिलेगी। 
         सोहम की टीम ने नवजात शिशुओं की नियमित जांच करने के लिए एक स्क्रीनिंग उपकरण तैयार किया है, जिसमें बच्चों के महत्वपूर्ण चरण में विकास के लिए मदद प्रदान करने की संभावना है। श्रवण स्क्रीनिंग बच्चे के सिर पर लगाये गये तीन इलेक्ट्रोड के माध्यम से श्रवण मस्तिष्क की तरंग मापता है। 
          उत्तेजित होने पर ये इलेक्‍ट्रोड बच्‍चे की श्रवण प्रणाली द्वारा उत्पन्न विद्युत प्रतिक्रियाओं का पता लगाती हैं। अगर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, तो बच्चा सुन नहीं सकता। बैटरी संचालित उपकरण गैर-इनवेसिव है, जिसका अर्थ है कि शिशुओं को बेहोश करने की ज़रूरत नहीं है।
        इस उपकरण का अन्य परीक्षण प्रणालियों की अपेक्षा महत्वपूर्ण लाभ यह है कि यह पेटेंट और इन-बिल्‍ट एल्गोरिथम है, जो परीक्षण संकेत से परिवेश के शोर को बाहर निकालता है। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वास्थ्य क्लीनिकों में बहुत भीड़भाड़ और शोर हो सकता हैं। 
          इस उपकरण को पांच नैदानिक ​​केंद्रों में स्थापित किया गया है जो वर्तमान में श्रवण स्क्रीनिंग कार्यक्रम चला रहे हैं। इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर उत्‍पादन बढ़ाने से पहले प्रथम वर्ष में अस्पताल में पैदा होने वाले दो प्रतिशत बच्‍चों की जांच करना है। इस परियोजना की महत्वाकांक्षी योजना हैं। भारत में पैदा होने वाले प्रत्येक बच्चे की जांच करना।

Wednesday, 12 July 2017

भारत व जर्मनी के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग

     प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत व जर्मनी के बीच स्वास्थ्य के क्षेत्र में सहयोग पर आधारित संयुक्त घोषणा पत्र हस्ताक्षर के लिए पूर्व-प्रभाव से अपनी मंजूरी दे दी है ।

   इस संयुक्त घोषणापत्र पर 01 जून, 2017 को हस्ताक्षर किए गए थे। इस संयुक्त घोषणापत्र में सहयोग के क्षेत्र शामिल हैं। 
       स्नातकोत्तर शिक्षा, चिकित्सा कार्मिकों का प्रशिक्षण, औषधि और औषधि अर्थशास्त्र, स्वास्थ्य अर्थशास्त्र।
     इस संयुक्त घोषणा पत्र से जुड़े सहयोग के क्षेत्र को और भी अधिक विस्तृत बनाने और इसके कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक कार्यसमूह गठित किया जाएगा।

Monday, 10 July 2017

चिकित्सा के उत्कृष्ट केंद्र के लिए पश्चिम बंगाल के साथ समझौता

       स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने यहां कोलकाता में रक्ताधान (ट्रांसफ्यूजन) चिकित्सा के क्षेत्र में उत्कृष्ट केंद्र स्थापित करने में पश्चिम बंगाल सरकार को सहयोग देने के लिए समझौता पर हस्ताक्षर किये। 

     भारत सरकार ने इस महत्वपूर्ण पहल के लिए उपकरण, कर्मचारियों और संचालन लागत के लिए लगभग 200 करोड़ रुपये के परिव्यय को मंजूरी दी है। इस पहल के लिए राज्य सरकार निःशुल्क भूमि उपलब्ध करवाएगी। इस कदम का उद्देश्य राज्य और आसपास के क्षेत्रों में रक्ताधान सेवाओं को सुदृढ़ करना है। अपर सचिव (स्वास्थ्य) आर. के. वत्स और पश्चिम बंगाल सरकार में प्रधान सचिव, स्वास्थ्य अनिल वर्मा ने अपने-अपने मंत्रालय की ओर से एमओयू पर हस्ताक्षर किए।
       महानगर रक्त बैंक परियोजना की परिकल्पना चार महानगरों दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई और कोलकाता में उत्कृष्ट रक्ताधान चिकित्सा केंद्र स्थापित करने के लिए स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय की योजना के रूप मे की गई थी। ये बड़ी मात्रा में रक्त एकत्रित करने के केंद्र हैं जहां रक्ताधान चिकित्सा के लिए खून के अवयवों को अलग-अलग करने और गुणवत्तापरक प्रणालियों के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जाता है।
         इन केंद्रो पर एकत्रित रक्त की जांच एनएटी द्वारा करने की सुविधा होगी और राज्य के अन्य ब्लड बैंकों को भी यह सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने पहले चरण के लिए मंजूरी दे दी है, जिसमें चेन्नई और कोलकाता में इस प्रकार के सुविधा केंद्र स्थापित किए जायेंगे। 
       इस परियोजना के लिए मंत्रालय का कार्यान्वय प्रभाग राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन के अंतर्गत राष्ट्रीय रक्ताधान परिषद होगा। चेन्नई में मेट्रो ब्लड बैंक स्थापित करने के लिए 14 जून, 2016 को एमओयू पर हस्ताक्षर किए गए थे। 
        देश में प्रति वर्ष लगभग 11 मिलियन ब्लड यूनिट एकत्रित किया जाता है। इसमे से लगभग 71 प्रतिशत रक्तदान स्वैच्छिक गैर-पारिश्रमिक दाताओं के माध्यम से एकत्रित किया जाता है।  

देश का सबसे बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल, होगा मुफ्त इलाज     नई दिल्ली। 20 वर्ष तक बंद रहने के बाद बाला साहिब अस्पताल यहां शुरू हो गया। जिसम...