Sunday, 7 March 2021

देश का सबसे बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल, होगा मुफ्त इलाज

    नई दिल्ली। 20 वर्ष तक बंद रहने के बाद बाला साहिब अस्पताल यहां शुरू हो गया। जिसमें पंथ रतन बाबा हरबंस सिंह जी कार सेवा वालों के नाम पर बनाए देश के सब से बड़े किडनी डायलिसिस अस्पताल का उदघाटन बाबा बचन सिंह जी ने गुरूद्वारा बाला साहिब परिसर में किया। यह अस्पताल 24 घंटे काम करेगा। विधिवत उद्घाटन से पहले गुरूद्वारा बंगला साहिब के हैड ग्रंथी ज्ञानी रणजीत सिंह जी ने अरदास की।

    इस प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देते हुए स. मनजिंदर सिंह सिरसा व स. हरमीत सिंह कालका ने बताया कि यह पूरी सिख कौम खास तौर पर दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी के लिए गर्व करने जैसा मौका है क्योंकि इसने देश के सब से बड़े अस्पताल को बनाने व शुरू करने के लिए पूरी योजनाबद्ध तरीके से काम किया। उन्होंने बताया कि इस अस्पताल में एक समय में 101 मरीजों का डायलिसिस हो सकेगा व प्रतिदिन 500 मरीजों का डायलिसिस हो सकेगा तथा जल्दी ही क्षमता बढ़ा कर अस्पताल को 1000बैड वाला किया जाएगा।

     उन्होंने कहा कि एक अन्य प्राप्ति यह है कि इस तकनीकी तौर पर एडवांस अस्पताल में सभी सेवाएं मुफ्त प्रदान की जाएंगी। अस्पताल में कोई बिलिंग या पेमेंट काउंटर नहीं होगा। इसके अलावा मरीज़ों व उनके साथ आए लोगों को गुरू का लंगर छकाया जाएगा।

    उन्होंने कहा कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी बड़े कारपोरेट घरानों से कारपोरेट सोशल रिसपांसीबिल्टी (सी.एस.आर), ऐसे प्रोजेक्ट के लिए योगदान देने वाले सज्जनों के योगदान व सरकारी स्कीमों का पूरा लाभ लेकर इस अस्पताल को चलाएगी। किसी भी मरीज़ के इलाज के लिए कोई पैसा नहीं लगेगा तथा देश के नामचीन डॉक्टर जो पहले ही डायलिसिस के क्षेत्र में हैं इस किडनी डायलिसिस अस्पताल का प्रबंध संभालेंगे।

    स. सिरसा व स. कालका ने कहा कि चाहे दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी जो सिख कौम की संस्था है इस प्रोजेक्ट की मालिक है पर यह अस्पताल समाज के हर वर्ग के लिए खुला है और कोई भी मरीज़ आ कर अपना डायलिसिस करवा सकता है। उन्होंने कहा कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी गुरू साहिबान द्वारा दर्शाए मार्ग ‘एक पिता एक्स के हम बारिक’ के सिद्धांत के अनुसार काम करती है।

     यहां उल्लेखनीय है कि श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने इस प्राजेक्ट का दौरा किया और समीक्षा करने के बाद कहा था कि उन्हें गर्व महसूस हो रहा है कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी जो सिख कौम की संस्था है देश का सब से बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल शुरु करने जा रही है। जत्थेदार ने गुरू हरिकृष्ण पोलीक्लीनिक में सब से सस्ती एम.आर.आई, सी.टी.स्कैन, अल्ट्रा साउंड व अन्य मैडिकल सहुलियतें गुरूद्वारा बंगला साहिब परिसर में शुरु करने की पहलकदमी की प्रशंसा की थी। ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने अन्यों को इससे प्रेरणा लेकर गुरूद्वारा साहिबान परिसर में ऐसी मैडीकल सहुलियतें स्थापित करने के लिए कहा था। आज ज्ञानी रणजीत सिंह जत्थेदार तख्त श्री पटना साहिब ने दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी द्वारा किये जा रहे प्रयासों की प्रशंसा की।

     इस मौके पर किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि हम 20 साल से यह इमारत देख रहे थे और हैरान थे कि सिख तो जिस काम को शुरु कर लेते हैं कभी बीच में नहीं छोड़ते। कल शाम जब हमें पता लगा कि यहां सब से बड़ा डायलिसिस अस्पताल खुल रहा है वह भी जहां सभी का ईलाज मुफ्त होगा तो हमें बहुत खुशी हुई। उन्होंने कहा कि ऐसे काम केवल सिख कौम ही कर सकती है। उन्होंने कहा कि जब महिंद्र सिंह टिकैत आंदोलन करते थे तो कहते थे कि लंगर गुरूद्वारा साहिबान में मिलता है पर आंदोलन में भी लंगर बहुत जरूरी है।

    स. सिरसा व स. कालका ने कहा कि हमनें बाला साहिब अस्पताल शुरू करने का वादा किया था व पहले पड़ाव में हमनें किडनी डायलिसिस अस्पताल शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी का मकसद सुरक्षा व पहुंच वाली मैडीकल सहुलियत को अपने नए विचारों की बदौलत प्रदान करना है और यह दोनों प्रोजेक्ट इसकी प्रत्यक्ष मिसाल हैं। उन्होंने कहा कि महंगे मैडीकल ट्रीटमेंट के इस युग में सब की पहुंच में मैडिकल सहुलियत प्रदान करना समय की जरूरत है व दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए काम कर रही है।

    इस मौके पर तख्त श्री पटना साहिब के जत्थेदार ज्ञानी रणजीत सिंह जी, दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी के अध्यक्ष स. मनजिंदर सिंह सिरसा, तख्त पटना साहिब प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष जत्थेदार अवतार सिंह हित्त महासचिव स. हरमीत सिंह कालका, वरिष्ठ नेता कुलदीप सिंह भोगल, वरिष्ठ उपाध्यक्ष रणजीत कौर व अन्य पदाधिकारियों के अलावा किसान नेता राकेश टिकैत, राजिंद्र सिंह चठ्ठा व अन्य गणमान्य शख्सीयतों के अलावा बड़ी गिनती में संगत मौजूद रही।

सोशल मीडिया के नियमन की दिशा में पहला कदम

    हिंसा और अश्लीलता को बढ़ावा देने वाली आपत्तिजनक ऑनलाइन सामग्री को बाहर रखने के लिए नियमन की आवश्यकता के साथ ही हमारे मूलभूत संवैधानिक मूल्यों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को संरक्षित करने की आवश्यकता का संतुलन नए नियमों के मूल में है,जिसे न्यू मीडिया से संबंधित चिंताओं को दूर करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा तैयार किया गया है।

 

   नीति ने एक तरफ ऑनलाइन समाचार प्लेटफॉर्म और प्रिंट मीडिया के बीच तथा दूसरी तरफ ऑनलाइन और टेलीविजन समाचार मीडिया के बीच समान शर्तें तैयार करने की कोशिश की है। इसके साथ ही ऑनलाइन समाचार पोर्टल को नैतिक आचार संहिता के दायरे में लाया गया है,जो प्रिंट मीडिया के लिए पहले से है जैसे प्रेस काउंसिल अधिनियम केबल टेलीविजन नेटवर्क्स (विनियमन) नियम1994ने पत्रकारिता के आचरण के मानदंड रखे हैं। इनमें से कुछ प्लेटफॉर्मों की लापरवाही और गैरजिम्मेदारी प्रदर्शित होने के कारण ऐसा करना काफी समय से लंबित था।

     इसी तरह सिनेमा उद्योग के पास निगरानी की जिम्मेदारियों के लिए एक फिल्म प्रमाणन एजेंसी तो है,पर ओटीटी प्लेटफॉर्मों के लिए कोई नहीं है। कलात्मक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने स्व-नियमन का प्रस्ताव दिया है और कहा है कि ओटीटी संस्थाओं को एक साथ होना चाहिए, एक कोड विकसित करना चाहिए और सामग्री का वर्गीकरण करना चाहिए जिससे गैर-वयस्कों को वयस्क सामग्री देखने से रोकने के लिए एक तंत्र विकसित किया जा सके। ऐसा करने के लिए उन्हें अवश्य कदम उठाना चाहिए। तीन स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र की बात कही गई है, जिसमें पहली दो प्रकाशकों और स्व-विनियमन संस्थाएं हैं। तीसरी श्रेणी केंद्र सरकार की निगरानी समिति है। प्रस्तावित नीति में प्रकाशकों को शिकायत निवारण अधिकारी नियुक्त करने और समयबद्ध जवाब और शिकायतों का समाधान सुनिश्चित करने की बात कही गई है। ऐसे में सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में एक स्व-विनियमन निकाय हो सकता है।

     ऑनलाइन प्लेटफॉर्म में उन नियमों को लेकर एक तरह की चिंता हैं जो खातों के सत्यापन ऐक्सेस नियंत्रण आदि की बात करते हैं लेकिन इन मुद्दों को भारत के कानूनों के दायरे में हल करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए जबकि मुख्यधारा का मीडिया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में हिंसा को बढ़ावा देने समुदायों के बीच शत्रुता,मानहानि आदि से निपटने के प्रावधानों के प्रति सचेत है लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर सामग्री इस सबसे पूरी तरह से बेखबर लगती है।

    मीडिया या अन्य क्षेत्रों में महिला पेशेवरों के बारे में सोशल मीडिया पर पोस्ट की गई अश्लील टिप्पणियां और इस तरह के व्यवहार से निपटने में अक्षमता एक तरह से आश्चर्यचकित करती है कि क्या आईपीसी साइबर स्पेस में लागू नहीं होता है।

     भारतीय डिजिटल और ओटीटी प्लेयर्स ऑस्ट्रेलिया में डिजिटल कंपनियों द्वारा की गई ठोस कार्रवाई से सीख ले सकते हैं, जिन्होंने साथ मिलकर फेक न्यूज और दुष्प्रचार से निपटने के लिए एक नियमावली तैयार की है। इसे ऑस्ट्रेलियन कोड ऑफ प्रैक्टिस ऑन डिसइन्फॉर्मेशन एंड मिसइन्फॉर्मेशन कहा जाता है और इसे हाल ही में डिजिटिल उद्योग समूह द्वारा जारी किया गया था।

     ऑस्ट्रेलियाई संचार और मीडिया प्राधिकरण (एसीएमए) ने इस पहल का स्वागत किया है और कहा है कि दो-तिहाई से ज्यादा ऑस्ट्रेलियाई इस बात को लेकर चिंतित थे कि 'इंटरनेट पर क्या सही है और क्या फर्जी'। जवाब में एसीएमए का कहना है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म स्व-नियामक कोड के लिए राजी हैं, जो दुष्प्रचार और झूठी खबर के फैलने से पैदा होने वाले गंभीर नुकसान के खिलाफ सुरक्षा उपाय करता है। डिजिटल प्लेटफॉर्मों द्वारा कार्रवाई करने के वादे में अकाउंट्स को बंद करना और सामग्री को हटाना शामिल है।

      यूके में सरकार ऑनलाइन कंपनियों को हानिकारक सामग्री के लिए जिम्मेदार बनाने के लिए और ऐसी सामग्री के हटाने में विफल रहने वाली कंपनियों को दंडित करने के लिए एक कानून लाने जा रही है। इस प्रस्तावित 'ऑनलाइन सुरक्षा विधेयक' का उद्देश्य इंटरनेट उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा करना और उन प्लेटफॉर्मों के साथ दृढ़ता से निपटना है जो हिंसा, आतंकवादी सामग्री, बाल उत्पीड़न, साइबर बुलिंग आदि को बढ़ावा देते हैं। डिजिटल सेक्रेटरी ओलिवर डाउडेन ने कहा है, 'निश्चित रूप से मैं प्रो-टेक हूं लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सभी के लिए टेक फ्री हो।' एक तरह से देखें तो यह इस मुद्दे पर लोकतांत्रिक देशों में वर्तमान मनोदशा को दिखाता है।

     यूके में स्व-नियमन प्रिंट मीडिया को नियंत्रित करता है और निजी टेलीविजन व रेडियो को स्वतंत्र टेलीविजन आयोग और रेडियो प्राधिकरण द्वारा नियंत्रित किया जाता है जैसा कि एक कानून द्वारा प्रदान किया गया है। सरकार के दिशानिर्देशों की घोषणा करने वाले दो मंत्रियों, रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर हैं और यह नहीं भूलना चाहिए कि ये दोनों 'दूसरी आजादी के संघर्ष' के नायक हैं जब वे 1970 के दशक के मध्य में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के खिलाफ लड़े और लगभग डेढ़ साल तक कैद में रहे जिससे लोगों को अपना संविधान और लोकतंत्र वापस मिल सके।

      स्पष्ट है कि बुनियादी लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता है और मीडिया नियमन के संबंध में नीतियों में भी दिखती रहेगी। आखिर में, वह फ्रेमवर्क जिसके दायरे में रहकर कंपनियों को भारत में काम करना चाहिए। जैसा कि केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि उन्हें देश के नियमों के तहत काम करना चाहिए और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता।

     हाल के समय में ट्विटर ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को परिभाषित करने की कोशिश की है और यहां तक दावा किया है कि वह भारतीयों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करना चाहता है। 'अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता'हमारे संविधान में मौलिक अधिकारों पर हमारे अध्याय में अंतर्निहित है और इसके साथ उचित प्रतिबंध भी है। ये मौजूद है क्योंकि भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक जटिलताओं के साथ दुनिया में सबसे विविध समाज है। यही वजह है कि भारत के संस्थापकों ने बहुत ही सहज भाव और दूरदर्शिता के साथ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर आगाह भी किया ताकि संवैधानिक अधिकार आंतरिक शांति और सद्भाव को बढ़ावा दे। ये स्वतंत्रताएं और प्रतिबंध क्या हैं, इसे हमारे सर्वोच्च न्यायालय ने अनगिनत मामलों में परिभाषित किया है और भारत की शीर्ष अदालत द्वारा निर्धारित कानून इस भूमि का कानून हैं। हम नहीं चाहते कि कुछ प्राइवेट अंतरराष्ट्रीय कंपनियां कोर्ट से ऊपर की भूमिका में आएं और हमारे संविधान के ऊपर होकर बात करें।

         ए. सूर्य प्रकाश

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