Wednesday, 23 August 2017

देश में 600 मिलियन से अधिक लोग किफायती स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल से वंचित

    केन्‍द्रीय पूर्वोत्‍तर क्षेत्र विकास राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार), प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, जन शिकायत, पेंशन, परमाणु ऊर्जा और अंतरिक्ष राज्‍य मंत्री डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने मेक इन इंडिया स्‍वास्‍थ्‍य मॉड्यूल तैयार करने का आग्रह किया है। 

  भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) द्वारा यहां आयोजित सीआईआई स्‍वास्‍थ्‍य सम्‍मेलन को संबोधित करते हुए उन्‍होंने कहा कि 21वीं सदी के भारत की बदलती हुई स्‍वास्‍थ्‍य जरूरतों को पूरा करने के लिए यह मॉड्यूल सार्वजनिक निजी भागीदारी और बहुकेन्‍द्रीय स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सहयोग पर आधारित हो सकता है। डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने कहा कि संपूर्ण भारतीय समाज बड़ी तेजी से उभर रहा है। 
       हाल ही के समय में भारत भी वैश्विक दुनिया का हिस्‍सा बन गया है। जिससे स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल व्‍यवस्‍था सहित जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र पर प्रभाव पड़ा है। एक ओर मधुमेह और हृदय से जुड़ी बीमारियां ग्रामीण क्षेत्रों में भी बढ़ रही हैं, जो पहले शहरी आबादी तक सीमित थीं। 
     वहीं दूसरी ओर इलाज के आधुनिक तरीके केवल शहरों और बड़े कस्‍बों तक ही सीमित हैं। जिसके परिणामस्‍वरूप 70 प्रतिशत ग्रामीण आबादी केवल देश की एक तिहाई अस्‍पताल सुविधाओं का ही लाभ उठा पाती है। 600 मिलियन से अधिक लोग देश में किफायती स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल से वंचित हैं।
     निजी क्षेत्र के उद्भव को महत्‍वपूर्ण बताते हुए डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने बल दिया कि भारत जैसे विविधता वाले देश के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल सुविधाएं अभी भी अत्‍यधिक प्रासांगिक है। इसलिए उन्‍होंने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल एजेंसियों के बीच स्‍वस्‍थ समन्‍वय का आग्रह किया। 
      डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने पूर्वोत्‍तर के अनुभव का हवाला दिया जहां उन्‍होंने देश के प्रमुख कॉरपोरेट क्षेत्र के अस्‍पताल समूहों को स्‍थान की व्‍यावहारिकता के आधार पर ओपीडी क्लिनिक या जांच केन्‍द्र अथवा संपूर्ण अस्‍पताल सहित विभिन्‍न स्‍तर के स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल केन्‍द्र स्‍थापित करने के लिए प्रोत्‍साहित किया था। 
     विविधता की सीमा का हवाला देते हुए डॉ. जितेन्‍द्र सिंह ने देश के विभिन्‍न क्षेत्रों की भौगोलिक विविधताओं के बारे में बताया। इस संदर्भ में उन्‍होंने पूर्वोत्‍तर के दूर-दराज के विस्‍तृत क्षेत्रों का हवाला दिया। कहा कि इस क्षेत्र में उन्‍होंने एयर क्लिनिक के रूप में हैलिकॉप्‍टर देखभाल सेवा शुरू करने का प्रस्‍ताव दिया था, जिसके जरिए विशेषज्ञ डॉक्‍टर दूर-दराज के क्षेत्रों में ओपीडी के लिए जा सकते हैं।
      वापसी के समय जरूरतमंद मरीजों को अस्‍पताल में दाखिल करने के लिये अपने साथ ला सकते हैं। उन्‍होंने कहा कि यही सुविधा जम्‍मू-कश्‍मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्‍तराखंड़ जैसे पहाड़ी राज्‍यों में भी शुरू की जा सकती हैं।

Thursday, 17 August 2017

घुटना प्रत्यारोपण की कीमतों में कमी, 1500 करोड़ की बचत

       प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा स्वतंत्रता दिवस 2017 के अवसर पर दिए गए भाषण में की गयी घोषणा के अनुसार सरकार ने घुटने की शल्य-चिकित्सा में प्रयुक्त आर्थोपेडिक प्रत्यारोपणों के उच्चतम मूल्य निर्धारित किए हैं। 

       यह जानकारी केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक एवं संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने मीडिया को संबोधित करते हुए दी। भारत में प्रतिवर्ष किए जाने वाले लगभग 1 से 1.5 लाख आर्थोपेडिक घुटना प्रक्रियाओं की संख्या के आधार पर इससे भारत के लोगों को प्रतिवर्ष लगभग 1500 करोड़ रुपये की बचत होगी। उन्होंने कहा कि यह अनैतिक मुनाफाखोरी को रोकने और आखिरी आदमी के लिए सस्ती और गुणवत्तायुक्त स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने की दिशा में एक कदम है। 
      कुमार ने कहा कि रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार इस व्यापार में बहुत मुनाफा था, जो अनुचित और अनैतिक मुनाफाखोरी के रूप में व्याप्त था। एनपीपीए ने उच्चतम मूल्य निर्धारित करते हुए सभी नई प्रौद्योगिकी प्रत्यारोपणों को ध्यान में रखते हुए ये मूल्य निर्धारित किए हैं। 
       अनंत कुमार ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने यह अनुमान लगाया गया है कि 2020 तक ऑस्टियो आर्थराइटिस दुनिया में गतिहीनता का चौथा सबसे बड़ा कारण बनने वाला है। भारत में 1.2 से 1.5 करोड़ ऑर्थोपेडिक मरीजों हैं जिन्हें आर्थोपेडिक प्रत्यारोपण सर्जरी की आवश्यकता है। अधिकांश निदान किए गए लोगों को घुटने की सर्जरी की आवश्यकता हैं लेकिन वह अधिक कीमत के कारण ऐसी सर्जरी कराने में असमर्थ हैं। 
         सरकार ने इस स्थिति को सुधारने के लिए आज से ही घुटने के प्रत्यारोपण के अधिकतम मूल्य निर्धारित कर रहे हैं। अनंत कुमार ने बताया कि सरकार को सभी आयातकों, वितरकों, खुदरा विक्रेताओं, अस्पतालों आदि सहित सभी हितधारकों से इस बारे में पूरा सहयोग मिलने की उम्मीद है, ताकि घुटना प्रत्यारोपण की कीमतों में की गयी इस कमी का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंच सके।
      उन्होंने यह भी बताया कि मुनाफाखोरी की सभी शिकायतों की कड़ाई से निगरानी की जाएगी और ली गई अधिक राशि दोषी पार्टियों से 18ऽ ब्याज के साथ वसूल की जाएगी। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार ऐसी पार्टियों के लाइसेंस रद्द करने और ऐसी अनैतिक मुनाफाखोरी में लगे हितधारकों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के बारे में भी विचार कर सकती है। 
     इस अवसर पर सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, शिपिंग, रसायन और उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख लाल मंडाविया, फार्मास्युटिकल्स सचिव जय प्रिये प्रकाश और एनपीपीए के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह भी उपस्थित थे।

 

Wednesday, 9 August 2017

संक्रमण से निपटने के लिए कृमि मुक्ति पहल, 31 करोड़ बच्‍चों को दवा देने का लक्ष्‍य

         स्‍वास्‍थ्‍य व परिवार कल्‍याण मंत्रालय, 33 राज्‍यों केन्‍द्र शासित प्रदेशों में 10 अगस्‍त, 2017 को राष्‍ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस 2017 की शुरूआत करेगा। 

      इसके तहत 17 अगस्‍त तक 31 करोड़ बच्‍चों को कृमि मुक्ति की दवा देने का लक्ष्‍य निर्धारित किया गया है। निजी विद्यालयों के 7.8 करोड़ बच्‍चों को लक्षित किया गया है। इनमें से 3.5 करोड़ बच्‍चों को आंगनवाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं के मध्‍यम से दवा दी जाएगी। यह सबसे बड़े जन स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रमों में से एक है। इसके तहत अल्‍पावधि में बच्‍चों की विशाल जनसंख्‍या तक पहुंचा जाएगा। 
    एनडीडी का पहला चरण फरवरी, 2017 में लागू किया गया था। इसके तहत 26 करोड़ बच्‍चों को दवा दी गई थी, जो कुल बच्‍चों का 89 प्रतिशत है। एनडीडी कार्यक्रम का शुभारंभ 2015 में हुआ था, जब विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन ने यह आकलन किया था कि भारत में 14 वर्ष से कम उम्र के 220 मिलियन बच्‍चों में मिट्टी संचारित कृमि (एचटीएच) संक्रमण का जोखिम है। 
           राष्‍ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस प्रत्‍येक वर्ष दो चरणों में आयोजित किया जाता है। इसके तहत 1 से 19 आयुवर्ग के सभी बच्‍चों को इस दायरे में लाने का प्रयास किया जाता है। केवल राजस्‍थान और मध्‍य प्रदेश में यह कार्यक्रम वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। इन दोनों राज्‍यों में मिट्टी संचारित कृमि (एसटीएच) रोग की दर 20 प्रतिशत से कम है।
        सभी बच्‍चों को स्‍कूलों और आंगनवाडि़यों में कृमि मुक्ति की दवा दी जाती है। कृमि मुक्ति से बच्‍चों में पोषण की स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है। कृमि संक्रमण से निपटने के लिए ‘एल्‍बेंडाजोल’ एक प्रभावी दवा है। एनडीडी का पहला चरण फरवरी, 2015 में आयोजित किया गया। 
        इसके तहत 11 राज्‍यों केन्‍द्र शासित प्रदेशों के 8.9 करोड़ बच्‍चों (कुल बच्‍चों का 85 प्रतिशत) को कृमि मुक्ति की दवा दी गई। इसके पश्‍चात फरवरी 2016, अगस्‍त 2016 और फरवरी 2017 के चरणों में क्रमश 25 करोड़, 12 करोड़ और 26 करोड़ बच्‍चों को दवा दी गई।

Tuesday, 8 August 2017

खसरा-रूबेला : 3.4 करोड़ बच्‍चों का टीकाकरण लक्ष्‍य

          भारत ने विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के सदस्‍य देशों के साथ वर्ष 2020 तक खसरा तथा रूबेला-वंशानुगत खसरा लक्षण (सीआरएस) को समाप्‍त करने का संकल्‍प व्‍यक्‍त किया है।

       इस दिशा में स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने 9 महीने से 15 वर्ष से कम आयु वर्ग में पूरे देश में चरणबद्ध तरीके से खसरा एवं हल्‍का खसरा टीकाकरण अभियान शुरू किया है। इस अभियान का लक्ष्‍य लगभग 41 करोड़ बच्‍चों को कवर करना है और यह पूरे विश्‍व में सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान बनने जा रहा है।
        अभियान के दौरान 9 महीने से 15 वर्ष के कम आयु के सभी बच्‍चों को खसरे और हल्‍के खसरे से बचानेके लिए एक सूई लगाई जाती है। इस अभियान के बाद एमआर टीका नियमित टीकाकरण का हिस्‍सा हो जाएगा और यह अभी 9-12 महीने के 16-24 महीनों के बच्‍चों को दिए जा रहे खसरे के टीका का स्‍थान ले लेगा। खसरा- रूबेला टीकाकरण अभियान का पहला चरण 5 राज्‍यों - तमिलनाडु, कर्नाटक, गोवा, लक्षद्वीप तथा पुद्दुचेरी- में सफलतापूर्वक पूरा हुआ। 3.3 करोड़ से अधिक बच्‍चों का टीकाकरण किया गया और इस तरह वांछित आयु समूह के 97 प्रतिशत के हिस्‍से तक पहुंचा गया।
      यह अभियान स्‍कूलों, सामुदायिक केंद्रों तथा स्‍वास्‍थ्‍य सुविधा केंद्रों पर चलाया गया। अगस्‍त महीने से अगला चरण आठ राज्‍यों केंद्र शासित प्रदेशों (आंध्र प्रदेश, चंढीगढ़, दादर नगर हवेली, दमन और दीव, हिमाचल प्रदेश, केरल, तेलंगना तथा उत्‍तराखंड) में शुरू हो रहा है और इसका लक्ष्‍य 3.4 करोड़ बच्‍चों को कवर करना है। अभियान का उद्देश्‍य समुदाय में खसरा और हल्‍के खसरे की बीमारी से प्रतिरोध क्षमता बढ़ाना है ताकि बीमारी पर प्रहार किया जा सके। 
       इसलिए अभियान के दौरान सभी बच्‍चों को एमआर टीका लगवाना चाहिए। जो बच्‍चे पहले इस तरह के टीके पहले लगवा चुके हैं उनके लिए यह नया डोज अतिरिक्‍त क्षमता प्रदान करेगी। अभियान के दौरान अधिकतम कवरेज का लक्ष्‍य हासिल करने के लिए अनेक हितधारकों को इस अभियान में शामिल किया गया है। 
      इसमें स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय, अन्‍य मंत्रालय, विकास सहयोगी, लायंस क्‍लब, पेशेवर संस्‍थाएं जैसे बाल रोग विशेषज्ञों का संगठन, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, सिविल सोसायटी ऑर्गेनाइजेशन शामिल हैं। यह अभियान खसरा और हल्‍के खसरे से होने वाली बीमारी और मृत्यु में कमी लाने के लिए वैश्‍विक प्रयास का हिस्‍सा है।

Friday, 4 August 2017

जांच में 3.16 प्रतिशत दवाएं मानकों के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण नहीं

          सड़क परिवहन एवं राजमार्ग, जहाजरानी और रसायन एवं उर्वरक राज्य मंत्री मनसुख एल मंडाविया ने राज्य सभा में एक लिखित प्रश्न के उत्तर में बताया कि सरकार ने देश में उपलब्ध दवाओं की गुणवत्ता जांचने के लिए अनेक कठोर कदम उठाए हैं। 

       देश में उपलब्ध दवाओं की गुणवत्ता की स्थिति को लेकर पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में मनसुख एल मंडाविया ने बताया कि वर्ष 2014-16 के दौरान राष्ट्रीय दवा सर्वेक्षण में 3.16 प्रतिशत दवाएं मानकों के अनुरूप गुणवत्तापूर्ण नहीं पाई गईं।
       मंत्री ने बताया कि जांच रिपोर्ट आने के बाद गुणवत्ता मानकों के अनुरूप न होने पर इन दवाओं को एनएसक्यू करार दे दिया गया। इसके साथ ही संबंधित राज्यों के लाइसेंस अधिकारियों से उचित कार्रवाई की अपील की गई। उनसे इन दवाइओं के समान बैच की दवाओं के नमूनो की जांच के लिए भी कहा गया।
        मंडाविया ने बताया कि सरकार ने दवाइओं की गुणवत्ता जांचने के लिए जो कठोर कदम उठाए हैं। मिलावटी और नकली दवा निर्माताओं के खिलाफ कठोर कार्रवाई के लिए वर्ष 1940 के औषध एवं प्रसाधन अधिनियम को औषध एवं प्रसाधन अधिनियम 2008 के तहत संशोधित किया गया। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से विशेष न्यायालयों के गठन की अपील की गई ताकि औषध एवं प्रसाधन अधिनियम के तहत दोषियों के विरूद्ध त्वरित गति से मुकदमा चलाया जा सके। अब तक 22 राज्य इस तरह के न्यायालय स्थापित कर चुके हैं। 
       नकली दवाओं को रोकने में जनभागीदारी के उद्देश्य से भारत सरकार ने ह्विसल ब्लोअर योजना घोषित की है। योजना के तहत संबंधित नियमन अधिकारियों को नकली दवाओं की पुख्ता सूचना देने वालों को ईनाम दिया जाएगा। दवाओं के नमूने गुणवत्ता मानकों के अनुरूप न पाए जाने और दवाओं के नकली होने पर औषध एवं प्रसाधन अधिनियम, 2008 के तहत कार्रवाई संबंधी निर्देश राज्यों के दवा नियंत्रकों को भेज दिए गए। 
       निरीक्षण कर्मचारियों को देशभर में दवाओं पर सख्त निगरानी रखने और जांच के लिए उनके नमूने लेने के निर्देश दिए गए। केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) में वर्ष 2008 में स्वीकृत 111 पदों की संख्या बढ़ाकर वर्ष 2017 में 510 कर दी गई। सीडीएससीओ के अंतर्गत चल रही दवा जांच प्रयोगशालाओं की क्षमता बढ़ाई गई। 
      दवाओं की गुणवत्ता से खिलवाड़ करने वाले तत्वों से निपटने के उद्देश्य से सरकार ने 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान केंद्र और राज्यों के दवा नियमन तंत्र को और प्रभावी एवं मजबूत बनाने का निर्णय लिया है। कैबिनेट की आर्थिक मामलों की समिति (सीसीईए) ने केंद्र और राज्यों के दवा नियमन तंत्र को मजबूत और प्रभावी बनाने के प्रस्ताव को मंजूर कर लिया है। 
       इस काम पर कुल 1750 करोड़ रुपये का खर्च आयेगा जिसमें केंद्र का हिस्सा 850 करोड़ रुपये होगा। राज्यों में केंद्र और राज्यों का हिस्सा 60:40 का होगा। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम और पूर्वोत्तर राज्यो में यह हिस्सा 90:10 का होगा।

स्तनपान से बच्‍चों में बेहतर मानसिक विकास

         स्तनपान को प्रोत्साहन तथा समर्थन देने के लिए प्रति वर्ष अगस्‍त के पहले सप्ताह में स्‍तनपान सप्ताह मनाया जाता है। 

       इस वर्ष के स्तनपान सप्ताह का विषय है 'सतत स्तनपान'। स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने आईएपी और राममोहन लोहिया अस्पताल के सहयोग से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाई है। स्तनपान को बढ़ावा देने के प्रयासों को तेज़ करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ‘एमएए-मा का पूर्ण स्‍नेह’ कार्यक्रम प्रारंभ किया है ताकि स्‍तनपान को प्रोत्‍साहन दिया जा सके और स्‍तनपान को समर्थन देने के लिए विभिन्‍न प्रावधानों सेवाओं को लागू किया जा सके। 
       इसके अलावा, "सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में लैक्टेशन प्रबंध केंद्र पर राष्ट्रीय दिशानिर्देश" हाल ही में जारी किए गए हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि बीमार और समय पूर्व जन्‍म लिए बच्चों को सुरक्षित स्तनपान उपलब्‍ध हो सके। एमएए कार्यक्रम के प्रमुख घटकों में जागरूकता पैदा करना, स्तनपान के प्रचार और सामुदायिक स्तर पर व्यक्तिगत परामर्श को बढ़ावा देना, मां और नवजात के निवास स्‍थान पर ही स्तनपान का परामर्श देना और इसकी निगरानी शामिल हैं।
         इन प्रयासों के लिए मान्यता पुरस्कार की भी व्‍यवस्‍था की गई है। इस कार्यक्रम के तहत आशा कार्यकर्ताओं को गर्भवती व स्तनपान कराने वाली माताओं तक पहुंचने और पारस्परिक बातचीत के दौरान स्तनपान के लाभ और इसकी तकनीक के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया गया है। सभी स्‍वास्‍थ्‍य केंद्रों और उप-केंद्रों के स्वास्थ्य कर्मियों तथा एएनएम को स्तनपान से संबंधित मुद्दों के संदर्भ में मां को कुशल सहायता प्रदान करने के लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। 
         एनएचएम के तहत, एमएए कार्यक्रम के सफल कार्यान्वयन के लिए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों (2016 से) के लिए वित्‍तीय सहायता की अनुशंसा की गई है। 23 राज्यों ने एमएए कार्यक्रम के तहत विभिन्न गतिविधियों को लागू करना शुरू कर दिया है। जैसे स्वास्थ्य कर्मियों के लिए एक दिन का संवेदीकरण कार्यक्रम, संबंधित विभागों की बैठक, नवजात व शिशु पोषण (आईवाईसीएफ) के तहत स्वास्थ्य कर्मियों का प्रशिक्षण, जन संचार के माध्‍यमों का उपयोग आदि। 
        एमएए कार्यक्रम के तहत लगभग 2.5 लाख आशा कार्यकर्ताओं, 40,000 स्वास्थ्य कर्मियों, ब्‍लॉक और जिला स्‍तर के कार्यक्रम प्रबंधकों, डॉक्‍टरों, नर्सों और एएनएम कार्यकर्ताओं को स्‍तनपान को प्रोत्‍साहन प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण दिया जा रहा है। लगभग 2800 स्‍वास्‍थ्‍य कर्मियों (स्‍वास्‍थ्‍य अधिकारी, नर्स और एएनएम) को मात्र 4 दिनों में ही आईवाईसीएफ प्रशिक्षण प्रदान किया जा चुका है। आशा कार्यकर्ताओं ने ग्राम स्‍तर पर 75,000 स्‍तनपान कराने वाली महिलाओं के साथ बैठकें की हैं और उन्‍हें स्‍तनपान कराने के सही तरीकों के बारे में जानकारी दी है।
       स्तनपान बच्चे के जीवन और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए एक महत्वपूर्ण व कम लागत वाला प्रयास है। जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराने से नवजात शिशुओं की मृत्‍यु में 20ऽ तक की कमी की जा सकती है। जिन शिशुओं को स्तनपान नहीं कराया जाता है, उनमें न्‍यूमोनिया से मरने की संभावना 11 गुना ज्यादा होती है। इसी प्रकार इन बच्चों में डायरिया से मरने की संभावना 15 गुना ज्‍यादा होती है। पांच साल से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु के उक्‍त दो कारण प्रमुख हैं।
       इसके अलावा, जिन बच्चों को स्तनपान नहीं कराया जाता है उनमें मधुमेह, मोटापे, एलर्जी, अस्थमा, ल्यूकेमिया, अचानक मृत्यु, सिंड्रोम आदि से ग्रस्‍त होने की संभावना अधिक होती है। मृत्यु और रुग्णता लाभ के अलावा, स्तनपान से बच्‍चों में बेहतर मानसिक विकास भी होता है।स्तनपान की प्रवृत्ति में वृद्धि हुई है। हाल के आंकड़ों के अनुसार पिछले दशक में प्रारंभिक स्तनपान की दर लगभग दोगुनी हो गई है। (अर्थात 23.4 प्रतिशत से 41.6 प्रतिशत ,एनएफएच-3, 2005-06 और 4, 2015-16)। 6 महीने से कम उम्र के बच्चे जिन्‍हें सिर्फ मां का दूध उपलब्‍ध कराया जाता है, के अनुपात में भी वृद्धि हुई है।
         यह 46.4 प्रतिशत (एनएफएच-3) से बढ़कर 54.9 (एनएफएच-4) प्रतिशत हो गई है। हालांकि, देश में संस्थागत प्रसव के उच्च अनुपात को देखते हुए प्रारंभिक स्तनपान दर में सुधार करने के अधिक अवसर मौजूद हैं।

Wednesday, 2 August 2017

अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा पर्यटन के लिए आयुर्वेद को बढ़ावा

       पर्यटन मंत्रालय ने आयुर्वेद समेत चिकित्सा और बेहतर स्वास्थ्य को मौसम तत्व पर काबू करने और भारत को पूरे 365 दिन पर्यटन स्थल के रुप में बढ़ावा देने एवं विशेष चाहत वाले सैलानियों को आकर्षित करने के लिए एक विशिष्ट उत्पाद के रूप में मान्यता दी है। 

     मंत्रालय ने राष्ट्रीय चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर्यटन बोर्ड का गठन किया है जो आयुर्वेद, योग, युनानी, सिद्धा और होम्योपैथी (आयुष) के तहत भारतीय चिकित्सा पद्धति के जरिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक समर्पित सांस्थानिक रुपरेखा उपलब्ध कराएगा।
     भारत को आयुर्वेद स्थल के रूप में वैश्विक अतुल्य भारत अभियान के जरिए प्रचारित किया जा रहा है। भारत पर्यटन कार्यालय भी व्यापार मेले, संवर्द्धन कार्यक्रमों, रोड शो और सेमिनार के जरिए प्रचार कार्य में लगे हैं। यह जानकारी राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में पर्यटन एवं संस्कृति राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) महेश शर्मा ने दी है।

Tuesday, 1 August 2017

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्रालय का ‘तीव्र मिशन इंद्रधनुष’

          पूर्ण टीकाकरण कवरेज में तेजी लाने और निम्‍न टीकाकरण कवरेज वाले शहरी क्षेत्रों एवं अन्‍य इलाकों पर अपेक्षाकृत ज्‍यादा ध्‍यान देने के लिए स्‍वास्‍थ्‍य एवं परिवार कल्‍याण मंत्रालय ने वर्ष 2018 तक लक्ष्‍य हासिल करने हेतु एक आक्रामक कार्य योजना तैयार की है। 

     योजना के मुताबिक राज्‍य 07 अक्‍टूबर, 2017 से निरंतर चार महीनों तक हर माह की सात तारीख से सात कार्य दिवसों के दौरान तीव्र मिशन इंद्रधनुष अभियान चलाएगी, जिसमें रविवार, अवकाश दिवस एवं सामान्‍य टीकाकरण दिवस शामिल नहीं हैं। तीव्र मिशन इंद्रधनुष के तहत कुल मिलाकर 118 जिलों, 17 शहरी क्षेत्रों और पूर्वोत्‍तर राज्‍यों के 52 जिलों को लक्षित किया जाएगा। तीव्र मिशन इंद्रधनुष के तहत उन शहरी क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत ज्‍यादा ध्‍यान दिया जाएगा, जिन पर मिशन इंद्रधनुष के तहत फोकस नहीं किया जा सका था। 
         शहरी क्षेत्रों में इससे वंचित रही आबादी के मानचित्रण और इन क्षेत्रों में टीकाकरण सेवाएं मुहैया कराने के लिए एएनएम की आवश्‍यकता आधारित तैनाती के जरिए यह काम पूरा किया जाएगा। शहरों के इन क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी तैनाती के लिए क्षेत्रीय कर्मचारियों को आवाजाही संबंधी सहायता मुहैया कराई जाएगी। सभी स्‍तरों पर गहन निगरानी एवं सुदृढ़ जवाबदेही व्‍यवस्‍था स्‍थापित की जा रही है। 
        राष्‍ट्रीय स्‍तर पर कैबिनेट सचिव और राज्‍य स्‍तर पर मुख्‍य सचिव इस दिशा में हो रही तैयारियों एवं प्रगति की समीक्षा करेंगे। तीव्र मिशन इंद्रधनुष के लिए चिन्हित प्रत्‍येक जिले पर संबंधित भागीदार प्रत्‍येक जिले हेतु चिन्हित मुख्‍य व्‍यक्ति के जरिए करीबी नजर रखेंगे। इसके अलावा, तीव्र मिशन इंद्रधनुष के विभिन्‍न चरणों के पूरा हो जाने के बाद तीव्र मिशन इंद्रधनुष के सत्रों को सामान्‍य टीकाकरण सूक्ष्‍म योजनाओं के साथ एकीकृत करने पर भी विशेष जोर दिया जाएगा। इन सत्रों के एकीकरण पर संबंधित भागीदार और वरिष्‍ठ सरकारी अधिकारी करीबी नजर रखेंगे। 
       तीव्र मिशन इंद्रधनुष की एक विशिष्‍ट खूबी यह है कि इसके तहत अन्‍य मंत्रालयों-विभागों विशेषकर महिला एवं बाल विकास, पंचायती राज, शहरी विकास, युवा मामले, एनसीसी इत्‍यादि से जुड़े मंत्रालयों एवं विभागों के साथ सामंजस्‍य बैठाने पर अपेक्षाकृत ज्‍यादा ध्‍यान दिया जा रहा है। विभिन्‍न विभागों के जमीनी स्‍तर वाले कामगारों जैसे कि आशा, एएनएम, आंगनवाड़ी कर्मचारियों, एनयूएलएम के तहत जिला प्रेरकों, स्‍वयं सहायता समूहों के बीच समुचित सामंजस्‍य तीव्र मिशन इंद्रधनुष के सफल क्रियान्‍वयन के लिहाज से अत्‍यंत आवश्‍यक है। 
         भारत के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम (यूआईपी) का मुख्‍य उद्देश्‍य 12 टीका निवारणीय रोगों से बच्‍चों एवं गर्भवती महिलाओं की मृत्‍यु दर एवं रुग्‍णता में कमी लाना है। विगत में यह देखा गया है कि टीकाकरण कवरेज में वृद्धि की गति धीमी पड़ गई थी और वर्ष 2009 एवं वर्ष 2013 के बीच इसमें 1 फीसदी वार्षिक की दर से वृद्धि हुई।
          इस कवरेज में तेजी लाने के लिए मिशन इंद्रधनुष की परिकल्‍पना की गई थी और वर्ष 2015 से इस पर अमल की प्रक्रिया शुरू की गई, ताकि पूर्ण टीकाकरण कवरेज को काफी तेजी से 90 फीसदी के स्‍तर पर पहुंचाया जा सके। मिशन इंद्रधनुष के चार चरणों को देश के 528 जिलों में पूरा किया जा चुका है। मिशन इंद्रधनुष के तहत अब तक 2.47 करोड़ से ज्‍यादा बच्‍चों और लगभग 67 लाख गर्भवती महिलाओं का टीकाकरण किया गया है। 
         मिशन इंद्रधनुष के प्रथम दो चरणों के परिणामस्‍वरूप एक साल में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है, जबकि इससे पहले इसमें 1 प्रतिशत की ही वृद्धि हुई थी। इसमें शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में कहीं ज्‍यादा वृद्धि दर्ज की गई है।

देश का सबसे बड़ा किडनी डायलिसिस अस्पताल, होगा मुफ्त इलाज     नई दिल्ली। 20 वर्ष तक बंद रहने के बाद बाला साहिब अस्पताल यहां शुरू हो गया। जिसम...